हनुमान चालीसा में छिपे 7 ज्ञान के मूल मंत्र

भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का संयुक्त अवतार माना जाता है। उनके तीन सिर त्रिदेवों के प्रतीक हैं और छह भुजाओं में वे शस्त्र और शांति दोनों धारण करते हैं।
भगवान दत्तात्रेय के साथ चार कुत्तों को दिखाया जाता है, जो चार वेदों का प्रतीक हैं। साथ ही, उनके साथ रहने वाली गाय पृथ्वी माता का रूप है।
दत्तात्रेय ने प्रकृति के 24 तत्वों को अपना गुरु माना — जैसे पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश आदि — और उनसे जीवन के गूढ़ रहस्य सीखे।
उन्होंने संसारिक मोह को त्याग कर “अवधूत मार्ग” अपनाया, जिसमें व्यक्ति पूरी तरह आत्म-स्वरूप में स्थित होता है।
योग साधना, ध्यान और ब्रह्मज्ञान में भगवान दत्तात्रेय का नाम आदिगुरुओं में लिया जाता है। कई योगियों को उन्होंने दीक्षा दी।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में उनके प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं — जैसे गाणगापुर, नरसिंहवाड़ी, और कुरवापुर — जहाँ भक्तजन विशेष पूजा करते हैं।
कई लोग मानते हैं कि शिर्डी के साईं बाबा, भगवान दत्तात्रेय के ही अवतार थे। उनके व्यवहार, शिक्षाएँ और शक्तियाँ इससे मेल खाती हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को “दत्त जयंती” के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान दत्तात्रेय के प्राकट्य का पर्व है। इस दिन विशेष पूजा, ध्यान और भजन का आयोजन होता है।
उनके तीन सिर — रचना (ब्रह्मा), पालन (विष्णु), और संहार (शिव) — को दर्शाते हैं। इसका अर्थ है कि वे सृष्टि के हर पक्ष में समाहित हैं।
भगवान दत्तात्रेय एक ऐसे आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक हैं जो त्रिदेवों के गुणों को एक साथ समेटे हुए हैं। उनके बारे में जानना केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मिक विकास की दिशा में एक कदम है।
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